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Description
राजकुमारी पृशा और जादुई लालटेन
बहुत समय पहले की बात है राजगढ़ रियासत की राजकुमारी पृशा अपने सहेलियों चंदा और रूपा के साथ पूर्णिमा की रात सुंदरगढ़ राज्य में होने वाले मेले को देखने के लिए महल में बिना किसी को बताए निकल पड़ती हैं, चारों ओर घनघोर अंधेरा छाया है और इस अंधेरे के सन्नाटे को चीरती तरह-तरह के जानवरों की आवाजें सुनकर तीनों डरकर काँपने लगती हैं लेकिन अब वो कर भी क्या सकती थीं, वो महल से बहुत दूर आ चुकी थीं| तभी सन्नाटों के बीच राजकुमारी पृशा अपनी सहेली चंदा से कहती हैं:
“तुम दोनों डरो मत, मेरे हाथों में तलवार है, मैं सबकुछ संभाल लूँगी| बस आगे बढ़ती चलो”
उधर दूसरी ओर चंदा और रूपा के मुंह से आवाज ही नहीं निकल पाती, वो दोनों राजकुमारी को अपना सर हिलाकर “हाँ” करती हैं, तो राजकुमार पृशा कहती हैं:
“अरे तुम दोनों कुछ बोलो तो सही और रूपा तुम ये मशाल मुझे दो, मैं आगे-आगे चलती हूँ और तुम दोनों मेरे पीछे-पीछे आओ”
ऐसा कहकर राजकुमारी खुद मशाल लेकर आगे बढ़ती हैं, लेकिन अंधेरे के चलते उन्हें रास्ता कुछ ठीक से दिखाई नहीं पड़ता और वो तीनों रास्ता भटक जाती हैं| काफी देर चलने के बाद भी जब उन्हें सुंदरगढ़ राज्य की सीमा से आती रोशनी नहीं दिखती तो थक कर वो तीनों एक पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं| तभी अचानक पत्तों की सरसराहट के बीच उन्हें दूर एक झोपड़ी से लालटेन लिए एक बुढ़िया दिखाई देती है, उसे देख वो तीनों डर जाती हैं, लेकिन राजकुमारी पृशा हिम्मत नहीं हारतीं, वो उठकर खड़ी होती हैं और बिना डरे उस बुढ़िया से पूछती हैं:
“तुम कौन हो? और इस घनघोर जंगल में क्या कर रही हो?”
बुढ़िया बोलती है:
“तुम शायद मुझे नहीं जानती बेटी, पर मैं तुम्हें जानती हूँ| तुम राजगढ़ की राजकुमारी पृशा हो ना?और अपनी सखियों के साथ सुंदरगढ़ का मेला देखने जा रही हो?”
राजकुमारी पृशा पहले तो अचरज में पड़ गईं, फिर बोलीं:
“आप को कैसे मालूम”
बुढ़िया ने कहा:
“मुझे सब मालूम है, और मैं तुम्हें ये बता दूँ कि अंधेरे के चलते तुम रास्ता भटक गयी हो और महल में भी तुमने किसी को नहीं बताया है| खैर, ये लो मेरी लालटेन, ये तुम्हें रास्ता दिखाएगी”
राजकुमारी पृशा ने कहा:
“मैं इस लालटेन पर कैसे विश्वास करूँ कि ये मुझे सही रास्ता दिखाएगी?”
बुढ़िया ने कहा:
“ठीक है, तुम इस लालटेन से खुद बात कर लो|”
“इस लालटेन से?” राजकुमारी पृशा ने बोला-
बुढ़िया ने कहा:
“हाँ, ये कोई ऐसी-वैसी लालटेन नहीं है, ये तो बोलने वाली जादुई लालटेन है”
“बता मेरी लालटेन, कौन हैं ये?” (बुढ़िया ने लालटेन से पूछा)
लालटेन ने कहा:
“ये, ये राजगढ़ की राजकुमारी पृशा हैं और इन्होने अपने पिता महाराज देवेंद्र सिंह को भी ये सूचना नहीं दी है कि ये राजमहल से बाहर आई हैं और छुप-छुपकर दुश्मन राज्य की सीमा सुंदरगढ़ में मेला देखने जा रही हैं”
राजकुमार पृशा लालटेन से बोलती हैं:
“अच्छा- अच्छा अब चलें”
बुढ़िया लालटेन से बोलती है:
“मेरी प्यारी लालटेन, राजकुमारी को रात के अंधेरे में ही मेला घूमाकर सकुशल सुबह होने से पहले महल में छोड़ देना, वरना महाराज परेशान होंगे”
“ठीक है मेरी प्यारी रानी माँ” (लालटेन ने कहा)
इतना कहकर लालटेन राजकुमारी को रास्ता दिखलाने चल पड़ी और राजगढ़ राज्य की वफादार जादूगरनी बुढ़िया वापस अपने झोपड़े में चली गयी| और ऊधर लालटेन ने राजकुमारी को पहले मेला दिखाया और फिर सुबह होने से पहले महल में छोड़ दिया|
तो बच्चों हमें इस कहानी से ये सीख मिलती है कि कभी भी बड़ों को बिना बताए हमें कोई काम नहीं करना चाहिए क्योंकि हर किसी को रास्ता दिखाने के लिए जादुई लालटेन नहीं मिलती|